श्रीमद्भगवद्गीता में शूद्र की परिभाषा का यथोचित आधुनिक विश्लेषण

Autor: Dr. Aparna (Dhir) Khandelwal, Prof. Bal Ram Singh
Jazyk: English<br />Hindi<br />Sanskrit
Rok vydání: 2020
Předmět:
Zdroj: Prachi Prajna, Vol VI, Iss 11, Pp 312-330 (2020)
Druh dokumentu: article
ISSN: 2348-8417
Popis: ʻजाति-विषयक भेदभाव के अङ्कुर प्रस्फुटित कहाँ से हुए’, क्या हमने कभी विचार किया? शास्त्रोक्त अनुदित विचार ही समाज में विभिन्न परिस्थितियों को जन्म देते हैं। प्रस्तुत आलेख में समाज की वर्तमानस्थिति को बताने हेतु श्रीमद्भगवद्गीता के 18 वें अध्याय के 44 वें श्लोक की व्याख्या पर लगभग 40व्याख्याओं एवं टीकाओं को उद्धृत की गया है। जब सभी त्रिगुणात्मक भाव व्यक्ति में विद्यमान है, तो त्रिगुणों की प्रबलता के आधार पर व्यक्ति कर्मयोग की ओर अग्रसर हो सकता है। इस दृष्टि से उपरोक्त श्लोक का विश्लेषण करने से समाज में विसंगत परिस्थितियों एवं कुरीतियों को रोका जा सकता है॥
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