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यह सत्य है कि गत वर्षों में कोरोना महामारी ने संपूर्ण मानव जीवन को उथल-पुथल कर दिया है । प्रत्येक व्यक्ति की जीवन शैली आज पूर्ण रूपेण परिवर्तित हो गई है। कोरोना के दुष्प्रभाव के कारण व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है तथा वह तनाव ग्रस्त होता जा रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति में श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ जिसमें संपूर्ण जीवन का सार निहित है, बहुत ही उपकारक और अभीष्ट है। भगवद्गीता में सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से जीवन जीने की कला बताई गई है। आज जबकि मनुष्य विभिन्न अंतर्द्वनद्वों से जूझ रहा है, ऐसे में गीता के प्रबंधन पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। गीता में मनोचिकित्सा का उपचार कर्म, ज्ञान और भक्ति के माध्यम से बताया गया है तथा त्रिगुणात्मक सिद्धांत के द्वारा शरीर, मन और आत्मा की चिकित्सा पद्धति का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस शोध-पत्र में गीता में विवेचित मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक गूढ़ रहस्यों का प्रतिपादन कर तनाव प्रबंधन के विविध उपायों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है, जो कि वर्तमान समय में अत्यंत उपादेय, महत्वपूर्ण और लाभप्रद सिद्ध हो सकता है। |